भांग की खेती पर राज्य सरकार ले सकती है बड़ा फैसला, जानिए किसानों को कैसे होगा फायदा
Hemp Cultivation: भांग की चुनिंदा खेती से सालाना 800 से 1,000 करोड़ रुपये का राजस्व प्राप्त हो सकता है. फार्मास्युटिकल उद्योग में अफीम की भारी मांग है.
Cannabis Cultivation: हिमाचल प्रदेश में उत्पादकों का एक वर्ग वैकल्पिक फसल के रूप में भांग की खेती (Bhang ki Kheti) की कानूनी रूप से अनुमति देने की मांग कर रहा है, क्योंकि फलों की फसल को हर साल मौसम की मार का सामना करना पड़ता है. साथ ही, आयातित सस्ते सेबों (Apples) से कड़ी प्रतिस्पर्धा ने उनकी कमाई को बुरी तरह प्रभावित किया है. उत्पादकों की मांग और इससे भी महत्वपूर्ण बात यह है कि राज्य 75,000 करोड़ रुपये से अधिक के भारी वित्तीय कर्ज के जाल में फंस गया है. इसलिए मुख्यमंत्री सुखविंदर सुक्खू के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार पहली बार भांग की नियंत्रित खेती (Hemp Cultivation) को वैध बनाने पर विचार कर रही है.
भांग की खेती से सरकारी खजाने में आएंगे 1000 करोड़ रुपये
औषधीय प्रयोजनों के लिए और मुख्य रूप से ग्रामीण अर्थव्यवस्था को मजबूत करने के अलावा, अवैध विक्रेताओं का व्यापार से कब्जा हटाना मुख्य उद्देश्य है.एक्सपर्ट्स ने बताया कि भांग की चुनिंदा खेती से सालाना 800 से 1,000 करोड़ रुपये का राजस्व प्राप्त हो सकता है. उनका कहना है कि फार्मास्युटिकल उद्योग में अफीम की भारी मांग है. साथ ही, राज्य में जलवायु की स्थिति इसकी खेती के लिए अनुकूल है.
ये भी पढ़ें- Success Story: 60 दिन की ट्रेनिंग ने बदली किस्मत, इस फूल की खेती से कमाया ₹40 लाख का मुनाफा
TRENDING NOW
FD पर Tax नहीं लगने देते हैं ये 2 फॉर्म! निवेश किया है तो समझ लें इनको कब और कैसे करते हैं इस्तेमाल
8th Pay Commission: केंद्रीय कर्मचारियों के लिए ताजा अपडेट, खुद सरकार की तरफ से आया ये पैगाम! जानिए क्या मिला इशारा
उत्तराखंड, राजस्थान और मध्य प्रदेश जैसे राज्यों ने भी अफीम की चुनिंदा खेती की अनुमति दी है, जिससे ग्रामीण अर्थव्यवस्था को मजबूत करने में काफी मदद मिली है.
सेबी उत्पादकों को होगा फायदा
हिमाचल प्रदेश में हिमालय के अल्पाइन क्षेत्रों में 12,000 से 18,000 फीट की ऊंचाई पर हिमनदी धाराओं के साथ जंगली पोस्ता उगता है. शिमला के प्रमुख सेब क्षेत्र जुब्बल के एक प्रमुख सेब उत्पादक रमेश सिंगटा ने कहा, भांग की नियंत्रित खेती सेब उत्पादकों के लिए पारिश्रमिक रिटर्न सुनिश्चित करेगी, जो केवल कमाई के लिए उन पर निर्भर हैं.उन्होंने कहा, चूंकि अधिकांश सेब बागानों को कायाकल्प की जरूरत है, जो एक महंगा प्रस्ताव है, अफीम की वैध खेती से अच्छा मुनाफा होगा.
अवैध खेती पर लगेगी लगाम
एक अन्य उत्पादक नरेश धौल्टा ने बताया कि अफीम की खेती से इसकी अवैध खेती पर लगाम लगाने में मदद मिलेगी क्योंकि यह जंगल में भी प्राकृतिक रूप से उगती है. ड्रग्स एंड क्राइम पर संयुक्त राष्ट्र कार्यालय के अनुसार, भारतीय अफीम का तुर्की और ईरानी अफीम पर एक बड़ा फायदा है, जहां तक तुर्की अफीम में औसतन 1% से भी कम कोडीन होता है और ईरानी अफीम में लगभग 2.5% होता है, जबकि भारतीय अफीम, इसकी मॉर्फिन सामग्री के अलावा, औसतन 3.5% कोडीन देती है.
ये भी पढ़ें- फूल की खेती, लाखों का मुनाफा
पुलिस अधिकारियों का कहना है कि कुल्लू, मंडी, शिमला और चंबा जिलों के विशाल इलाकों में भांग और अफीम के खेत अवैध रूप से उगाए जाते हैं, जिससे नशीली दवाओं की खेती, तस्करी और इसके उपयोग की गंभीर समस्या पैदा होती है. कुल्लू जिले में भांग की खेती मलाणा, कसोल और अन्य क्षेत्रों के ऊंचे इलाकों तक सीमित है, जबकि चंबा जिले में, जम्मू और कश्मीर के डोडा क्षेत्र की सीमा पर यह मुख्य रूप से केहर, तिस्सा और भरमौर के दूरस्थ क्षेत्रों में की जाती है.
हिमाचल प्रदेश में उत्पादित 60% से अधिक अफीम और भांग की तस्करी इजरायल, इटली, हॉलैंड और अन्य यूरोपीय देशों जैसे देशों में की जाती है. बाकी नेपाल, गोवा, पंजाब और दिल्ली जैसे भारतीय राज्यों में भेजा जाता है.
ये भी पढ़ें- Success Story: स्कूल ड्रॉपआउट बेच रहा 5,500 रुपये लीटर गधी का दूध, अमेरिका, चीन, यूरोप तक फैला बिजनेस
Zee Business Hindi Live TV यहां देखें
03:42 PM IST